B.A. 3rd Year Foundation Course Hindi | B.com 3rd Year Foundation Course | B.Sc. 3rd Year Foundation Course | B.A., B.com, B.Sc. Third Year Foundation Course 1st Subject | इस आर्टिकल में इकाई -1 के सभी प्रश्नो बताया गया। | विषय: हिंदी भाषा और नैतिक मूल्य | बी.ए., बी.कॉम, बी.एससी. तृतीय वर्ष फाउंडेशन कोर्स प्रथम विषय “इकाई – 1” के इम्पोर्टेन्ट प्रश्नो को बताया। निमाड़ और मालवा लोककलाओ , लोकचित्र, लोकशिल्प और लोकनृत्यों के बारे में पूरा विवरण बताया | इस में हमने बुन्देलखण्ड और बघेलखण्ड लोककलाओ , लोकचित्र और लोकनृत्यों के बारे में पूरा विवरण बताया गया। इस पोस्ट को अच्छे ध्यान से पढ़ते हो, तो आपको एक ही बार में याद हो जायेगा। ‘मेरे सहयात्री’ संस्मरण का सारांश, ‘मेरे सहयात्री’ में लेखक ने किन-किन सहयात्रियों का जिक्र किया है?, संस्मरण क्या है?,
विषय: हिंदी भाषा और नैतिक मूल्य
“इकाई -1”
प्रश्न 1. (अ) ‘मेरे सहयात्री’ संस्मरण का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
अमृतलाल बेगड़ द्वारा लिखित ‘मेरे सहयात्री पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:–‘मेरे सहयात्री श्री अमृतलालजी बेगड़ द्वारा लिखा गया एक यात्रा वृत्तान्त है। इसमें लेखक ने बताया है कि जब 1980 में वे नर्मदा परिक्रमा (यात्रा) में थे तो उन्हें 75 वर्षीय एक बुजुर्ग मिले थे जो नर्मदा की ‘जिहलरी परिक्रमा कर रहे थे। इस उम्र में उनकी ऐसी कठिन पदयात्रा से लेखक अत्यधिक प्रभावित हुए थे तथा उन्होंने सोचा कि जब मैं भी 75 वर्ष का हो जाऊँगा तो नर्मदा पदयात्रा जरूर करूँगा। 3 अक्टूबर, 2002 को लेखक 75वें वर्ष में प्रवेश कर गए तथा इसी समय उनकी प्रथम नर्मदा पदयात्रा, के 25 वर्ष भी पूरे हुए थे, तो उन्होंने उसकी स्मृति में पुन: नर्मदा पदयात्रा ‘पुनरावृत्ति यात्रा पर जाने की योजना बनाई।
लेखक अपनी पत्नी कान्ता, अपने बेटे के एक सहपाठी अशोक तिवारी, मुम्बई के चार लोग रमेश शाह, उनकी पत्नी हंसा, पुत्र संजय और इस परिवार के एक अभिन्न मित्र गार्गी देसाई, दिल्ली के अखिल मिश्र, मंडला से अरविन्द गुरु और उनकी पत्नी मंजरी, तीन गोंड सेवक फगनू, घनश्याम तथा गरीबा के साथ लेकर अपनी पुनरावृत्ति यात्रा पर निकले।
अपने घर से पहले मंडला, फिर वहाँ से बीस किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित गुरु स्थान पर गए। रात वहीं गुजार कर 7 अक्टूबर, 2002 को नर्मदा पर बने मानोट के पुल पर आकर वहीं से नर्मदा के दर्शन कर ‘नर्मदे हर’ कहते हुए उन्होंने अपनी यह नर्मदा पदयात्रा शुरू की।
प्रश्न 2. नर्मदा नदी के सौन्दर्य पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर:– प्रकृति का सौन्दर्य हमें भी मन से सुन्दर होने की प्रेरणा देता है। प्राकृतिक सौन्दर्य में एक पावन भाव होता है। ऐसा मनुष्य द्वारा निर्मित सौन्दर्य में नहीं हो पाता है। नर्मदा भारत के मध्य भाग से पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली एक प्रमुख बड़ी नदी है। यह गंगा के समान ही पूजनीय है। नर्मदा नदी की उत्पत्ति महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखर से हुई है। इसके उद्भव से लेकर संगम तक लगभग दस करोड़ तीर्थ स्थान हैं।
नर्मदा का उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी-श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान में हुआ है। इस कारण इसे मैकाल कन्या भी कहते हैं। स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवाखंड के अन्तर्गत किया गया। कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को रेवा सम्बोधन किया गया है। जिसका अर्थ है- पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली।
नर्मदा की तेज धारा वास्तव में पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है। अमरकंटक में सुन्दर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रूद्रकन्या भी कहते हैं. जो आगे चलकर विशाल नर्मदा नदी का रूप धारण कर लेती है। पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं, जहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलकर छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर करीब 1310 कि.मी. का सफर तय कर नर्मदा भरौच के आगे खंभात की खाड़ी में गिरकर विलीन हो जाती है। परम्परा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान है, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन-मात्र से समस्त पापों का नाश होता है।
नर्मदा नदी के तट पर जबलपुर शहर बसा हुआ है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट नर्मदा का भेड़ाघाट जलप्रपात काफी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहाँ किसी युग में भृगु ऋषि तपस्या करते थे। चट्टानों के निर्मल और सुन्दर स्वरूप को देखकर आज भी ऐसा प्रतीत होता है मानो असंख्य ऋषि-मुनि नर्मदा के तट पर तपस्या में लीन हैं। नर्मदा जल में खड़ी चट्टानें भी उनकी संगति में पुण्यता को प्राप्त होती हैं। इन संगमरमर की चट्टानों पर जब चाँद आता है, तो चाँद सी चमक उठती हैं और सूरज के सान्निध्य में तप उठती हैं। सतपुड़ा की संगमरमर की चट्टानों पर गिरकर नर्मदा प्राकृतिक सुन्दरता का अनूठा दृश्य प्रस्तुत करती है। इस स्थान पर उसका रूप तथा वेग उसके यौवन का प्रतीक माना जाता है। औकारेश्वर एवं महेश्वर नामक नगर इसके तट पर बसे हैं। यहाँ उत्तरी किनारे पर अनेक मंदिर, महल एवं स्नान घाट बने हुए हैं। नर्मदा की लहरों की कलकल ध्वनि तीर्थ यात्रियों का उत्साह बढ़ाती है। इसके बाद नर्मदा भरूच पहुँचकर अन्त में खंभात की खाड़ी में समा जाती है।
नर्मदा का केवल प्राकृतिक सौन्दर्य ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सौन्दर्य भी है, लोग इसके जल को पवित्र मानकर विभिन्न धार्मिक कृत्यों में उपयोग करते हैं। नर्मदा मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है। मध्यप्रदेश के निवासी इसे गंगा से भी अधिक पवित्र मानते हैं। उनकी मान्यता है कि साल में एक बार गंगा स्वयं काली गाय का रूप लेकर इसमें स्नान करने आती है और श्वेत होकर चली जाती है। धार्मिक मान्यतानुसार विश्व में प्रत्येक शिव मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान हैं, जिनकी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं पड़ती। गंगा में स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है, परन्तु नर्मदा के दर्शन से ही व्यक्ति के सर्व पाप नष्ट हो जाते हैं, ऐसी मान्यता है।
प्रश्न 3. संस्मरण के आधार पर बेगड़जी के सहयात्रियों पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
अथवा
‘मेरे सहयात्री’ में लेखक ने किन-किन सहयात्रियों का जिक्र किया है?
उत्तर:– ‘मेरे सहयात्री’ यात्रा वृत्तान्त में लेखक के साथ उस नर्मदा पदयात्रा में लेखक की पत्नी कान्ता, लेखक के बेटे का सहपाठी अशोक तिवारी, मुम्बई से चार लोग अर्थात् 64 वर्षीय रमेश शाह, उनकी 61 वर्षीय पत्नी हंसा, 36 वर्षीय पुत्र संजय तथा इस परिवार की एक अभिन्न मित्र 26 वर्षीय गार्गी देसाई थे। दिल्ली से अपोलो हॉस्पिटल के डॉ. अखिल मिश्र तथा मंडला से अरविन्द गुरु और उनकी पत्नी मंजरी तथा तीन अन्य लोग फगनू, घनश्याम व गरीबा (तीनों गोंड) यह सब लेखक के सहयात्री थे।
प्रश्न 4. संस्मरण क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:– लेखक के स्मृति-पटल पर अंकित किसी विशेष के जीवन की कुछ घटनाओं का रोचक विवरण ही संस्मरण कहलाता है। इसमें लेखक केवल उसी का वर्णन करता है, जो लेखक ने स्वयं देखा या अनुभव किया।
संस्मरण निकटता से देखे गए व्यक्तियों से सम्बन्धित होता है, अत: इसका विवरण सर्वथा प्रमाणित होता है, संस्मरण लेखक जब अपने विषय में लिखता है, जीवनी के निकट होती है। संस्मरण के इन दोनों प्रकारों को अंग्रेजों में क्रमशः ‘रेमिनिसेसज’ और ‘मे-वायर्स’ कहते हैं। संस्मरणकार संस्मरण में अपने समय का इतिहास भी प्रस्तुत करता है, किन्तु उसका दृष्टिकोण इतिहास के वस्तु परक दृष्टिकोण से पूर्ण रूप से भिन्न होता है। संस्मरण लेखक जो स्वयं देखता है, जो स्वयं अनुभव करता है उसी का वर्णन करता है। इस प्रकार उसका वर्णन स्वयं की अनुभूतियों और संवेदनाओं से अनुप्राणित होता है। वह वास्तव में सम्पूर्ण भावना और जीवन के साथ अपने आस-पास के वातावरण का सृजन करता है।
प्रश्न 5. मुहावरों व लोकोक्तियों में क्या अन्तर है? लिखिए।
अथवा
लोकोक्ति तथा मुहावरों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:– लोकोक्ति एवं मुहावरों में अन्तर लोकोक्ति एवं मुहावरे इन दोनों का काम भाषा को अधिक प्रभावी तथा चमत्कारोत्पादिनी बनाते हुए इस कथन को अधिकाधिक स्पष्ट बनाने से सम्बन्धित है। अत: उददेश्य की दृष्टि से मुहावरा तथा लोकोक्ति समान है, लेकिन इस समानता के बावजूद दोनों में निम्नलिखित अन्तर हैं –
- मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक प्रयोग माने जाते हैं। लोकोक्तियाँ किसी कहानी में निहित सत्य पर आधारित होती हैं। इनका प्रयोग विषय पर स्पष्ट करने के ध्येय से भी किया जाता है। मुहावरे केवल सौन्दर्य अथवा चमत्कार उत्पन्न करते हैं।
- प्रसंग निर्वाह लोकोक्ति और मुहावरा दोनों के लिए अनिवार्य है किन्तु लोकोक्ति जिस कहानी के सत्य पर आधारित है उससे सम्बन्धित दृष्टांत भी उपस्थिति करती है। मुहावरे किसी कथा के सत्य पर आधारित नहीं रहते। अत: वे दृष्टान्त नहीं प्रस्तुत करते।
- महावरा किसी वाक्य का अंश होता है। उसका अलग से विशेष अर्थ नहीं होता । वे वाक्याश्रित रहकर ही अपने कथ्य को स्पष्ट तथा चरितार्थ करते हैं। इसके प्रतिकूल कहावतें अथवा लोकोक्तियाँ स्वत: पूर्ण होती हैं। अपने माध्यम से ये विशेष अर्थ को संकेतित करती हैं। मुहावरे अलग से ऐसा नहीं कर सकते।
- मुहावरों को वाक्य से निकाल देने पर उनके सौन्दर्य पर असर पड़ सकता है, किन्तु लोकोक्तियों के साथ ऐसा नहीं होता। वाक्य में रहने पर लोकोक्तियों में जो सौन्दर्य रहता है, वह वाक्य के बाहर भी बना रहता है।
- लोकोक्तियों की रचना साहित्यकारों द्वारा भी की जाती है। कवि अथवा कथाकार किसी घटना को रंग देने के ध्येय से किसी काव्यात्मक शक्ति की रचना कर डालते हैं। बाद में यह उक्ति लोकोक्ति के रूप में स्वीकृत हो जाती है। ऐसे शूद्र गंवार ढोल, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी।
- मुहावरों के लिए क्रियापद आवश्यक है। मुहावरे इन्हीं से नियन्त्रित रहते हैं, किन्तु लोकोक्तियों के लिए क्रियापद अनिवार्य नहीं होते। इसीलिए मुहावरे स्वयं में एक वाक्य न होकर वाक्य के अंश होते हैं। लोकोक्तियाँ अपने आप में एक वाक्य होती हैं। ये अपने में पूर्ण भी रहती हैं।
- लोकोक्तियों का फल स्वतन्त्र होता है। ये साधन तथा साध्य दोनों होती हैं। मुहावरे केवल कथन की शैली के रूप में आते हैं।
प्रश्न 6. मुहावरा क्या है? मुहावरो की क्या विशेषताएं हैं ? लिखिए।
अथवा
मुहावरे की परिभाषा दीजिए है। मुहावरो की विशेषता पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
उत्तर:– मुहावरा का अर्थ एवं परिभाषा- मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है, इसका अर्थ होता है-‘अभ्यास’ या बातचीत । इसकी परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है
“ऐसा वाक्यांश जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी विलक्षण अर्थ की प्रतीति कराये, ‘मुहावरा’ कहलाता है।” मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सरलता और प्रवाह आ जाता है।
मुहावरों की विशेषताएँ-
मुहावरों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- मुहावरे के विलक्षण अर्थ की सिद्धि वाक्य में प्रयुक्त होने पर ही होती है। वाक्य से पृथक् मुहावरा अपनी विलक्षणता को सिद्ध नहीं कर पाता। जैसे-कोई कहे ‘मुँह बनाना’ तो उसमें कोई अर्थ-वैभव प्रकट नहीं होगा। इसके विपरीत कहे कि उसने मैले कपड़े देखकर मुँह बनाया, तो वाक्य के अर्थ में लाक्षणिकता और व्यक्तित्व उत्पन्न होगा।
- पर्यायवाची शब्द रख देने से मुहावरे की विचित्रता जाती रहती है। जैसे–’पानीपानी होना’ एक मुहावरा है। इसके स्थान पर ‘जल-जल होना’ लिख देने से मुहावरे का अर्थवैभव नष्ट हो जाएगा।
- मुहावरों का अर्थ यादृच्छिक अथवा सामाजिक स्वीकृति के आधार पर नहीं, वरन् प्रसंग के अनुसार द्योतित होता है। यही कारण है कि मुहावरे अपने प्रत्येक प्रयोग के साथ एक नया चमत्कार लेकर अवतरित होते हैं। उदाहरण के लिए ‘अंक भरना’ को लिया जा सकता है। देखिए-माता ने देखते ही अपने बेटे को अंक भर लिया। यहाँ अंक भर लिया का अभिप्राय हृदय से लगा लिया। ईश्वर तुम्हारा अंक भरे–यहाँ अंक भरने का आशय है तुम्हारे सन्तान हो।
- मुहावरे सहज तथा सरस वातावरण में निर्मित होते हैं उनमें किसी प्रकार की कांटछांट, अस्वाभाविकता अथवा कृत्रिमता नहीं रहती। ये व्याकरण के नियमों अथवा सम्बन्धित भाषा की व्यवस्था की चिन्ता नहीं करते। मुहावरों की स्वाभाविकता के कारण लोगों की मान्यता है कि मुहावरे प्राय: गाँवों में निर्मित होते हैं।
- मुहावरे में शब्दार्थ नहीं, अपितु उसमें दिया हुआ अर्थ ही महत्वपूर्ण होता है। जैसे’खिचड़ी पकाना’ एक मुहावरा है। इसमें ‘खिचड़ी’ और ‘पकाना’ दोनों के कोश प्रसिद्ध अर्थ अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है इसका अप्रस्तुत अर्थ ‘गुप्त रूप से सलाह करना। मुहावरे के इस अप्रस्तुत अर्थ की प्रतीति निरन्तर प्रयोग की एक लम्बी परम्परा के कारण सहज ही हो जाती है।
प्रश्न 7. लोकोक्ति किसे कहते हैं? लोकोक्तियों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कहावत एक प्रकार का नीति कथन है, स्पष्ट कीजिए । उदाहरण दीजिए।
उत्तर:– लोकोक्ति का अर्थ एवं परिभाषा – किसी व्यक्ति विशेष अथवा लोक मानस द्वारा गढ़ी गयी तथा लोक जीवन में प्रचलित एवं स्वीकृत शक्ति को लोकोक्ति कहते हैं। लोकोक्ति के अन्तर्गत केवल वे ही शक्तियाँ समाविष्ट की जाती हैं, जो किसी सत्य, भाव या अनुकूल सत्य को चमत्कारपूर्ण ढंग से प्रकट करती है।
लोकोक्ति को कहावत भी कहा जाता है। कहावत शब्द संस्कृत के ‘कथावस्तु’ शब्द से विकसित हुआ। इससे यह ध्वनित होता है कि कहावत अथवा लोकोक्ति का सम्बन्ध किसी कथा अथवा कहानी में निहित किसी तथ्य से रहता है। लोकोक्तियों अथवा कहावतों का प्रयोग करके वाक्य (भाषा को भी) अधिक प्रमाणिक, युक्तिसंगत, तार्किक तथा जोशीला बनाया जा सकता है। कहावतों के कारण कथन में विशेष प्रभाव आ जाता है। कथन को स्पष्ट करने की दृष्टि से भी लोकोक्तियाँ अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इसलिए संस्कृत में कहावतों को भाषा का अलंकार मानकर इनको लोकोक्ति के नाम से भी अभिहित किया जाता रहा है। कहावतों के अन्दर नीतिपरक संकेत भी रहते हैं। आचार-विचार तथा आहार-विहार के सन्दर्भ में भी लोकोक्तियाँ अनुभव पर आधारित शाश्वत सत्य का प्रतिपादन करती हैं।
लोकोक्ति की विशेषताएँ-
लोकोक्तियों की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं-
- संक्षिप्तता- लोकोक्तियाँ संक्षिप्त होती हैं। ये यद्यपि अपने आप में पूर्ण रहती हैं परन्तु किसी सत्य के आधार पर ये मात्र दृष्टान्त उपस्थित करती हैं। अत: इनका आकार बहुत छोटा रहता है।
- स्वतः पूर्णता- लोकोक्तियाँ किसी क्रिया या वाक्य पर आधारित न रहकर अपने आप में एक इकाई रहती है। अत: तथ्य, कथ्य और अर्थ की दृष्टि से वे अपने आप में पूर्ण होती है। उनको समझने के लिए किसी प्रसंग या अन्य वाक्य की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- सारगर्भिता- लोकोक्तियाँ किसी कहानी में निहित सत्य पर आधारित रहती है। यह सत्य अनुभूत तथा स्वीकृत रहता है। अत: उसको अत्यन्त संक्षेप में सारगर्भित पदों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
- सरलता तथा सजीवता- लोकोक्तियाँ लोक जीवन से सम्बन्धित अनुभवों पर आधारित रहती है। अपनी स्पष्टता, मधुरता, सहजता तथा सरलता के कारण ये श्रोताओं को प्रभावित करके उनके द्वारा अपने को स्वीकृत करा लेती हैं। लोकोक्तियाँ वस्तुत: लोक मानस की अमूल्य निधि है। अत: लोकमानस की सहजता और सरलता इसमें कूट-कूट कर भरी रहती है।
- वाच्यार्थत- लोकोक्तियाँ प्राय: वाच्यार्थ का ही बोध कराती हैं। इनमें लाक्षणिकता प्राय: नहीं रहती। ये अपने वाच्यार्थ द्वारा ही जो कुछ कहना होता है, उसे स्पष्ट कर देती हैं। इसके प्रतिकूल मुहावरों में लाक्षणिकता रहती है।
प्रश्न 8. मालवा की लोककला का विवेचन कीजिए।
“अथवा”
(1) मालवा के लोकचित्र पर लेख लिखिए।
(2) मालवा के लोकशिल्प पर प्रकाश डालिए ।
(3) मालवा के प्रमख लोकनृत्यों के बारे में बतलाइए।
उत्तर:– इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए “यहां क्लिक करे” इस का उत्तर पूरा विस्तार से बताया है।
प्रश्न 9. निमाड़ की लोककला पर प्रकाश डालिए।
“अथवा”
(1) निमाड़ी लोकचित्रकला पर टिप्पणी लिखिए।
(2) निमाड़ी लोकशिल्प को संक्षेप में लिखिए।
(3) निमाड़ी लोकनृत्यों के बारे में बताइए।
उत्तर:– इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए “यहां क्लिक करे” इस का उत्तर पूरा विस्तार से बताया है।
प्रश्न 10. बुन्देलखण्ड की लोककला पर निबन्ध लिखिए।
“अथवा”
(1) बुन्देली लोकचित्र पर लेख लिखिए।
(2) बुन्देली लोक नृत्यों के बारे में विस्तार से समझाइए।
उत्तर:– इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए “यहां क्लिक करे” इस का उत्तर पूरा विस्तार से बताया है।
प्रश्न 11. बघेलखण्ड की लोककला पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:– इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए “यहां क्लिक करे” इस का उत्तर पूरा विस्तार से बताया है।
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