B.A. 3rd Year Foundation Course Hindi | B.com 3rd Year Foundation Course | B.Sc. 3rd Year Foundation Course | B.A., B.com, B.Sc. Third Year Foundation Course 1st Subject | इस आर्टिकल में इकाई – 3 के Important प्रश्नो को बताया गया। | विषय: हिंदी भाषा और नैतिक मूल्य | बी.ए., बी.कॉम, बी.एससी. तृतीय वर्ष फाउंडेशन कोर्स प्रथम विषय “इकाई – 3” के इम्पोर्टेन्ट प्रश्नो को बताया।
B.A. 3rd Year Foundation Course Hindi
पत्रकारिता का आशय स्पष्ट कीजिए, खोजी पत्रकारिता क्या है ?, साहित्यिक पत्रकारिता को संक्षेप में समझाइए, ग्रामीण पत्रकारिता क्यों आवश्यक है?, फीचर लेखन को स्पष्ट कीजिए।, मालवा के लोक साहित्य को विस्तार, एक अच्छे प्रारूपण की विशेषताएँ लिखिए।, अनुस्मारक क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। और टिप्पण का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए उसकी विशेषताएँ लिखिए। इस पोस्ट में इन सभी प्रश्नो को बताया।
बी.ए., बी.कॉम, बी.एससी. तृतीय वर्ष फाउंडेशन कोर्स
प्रथम विषय “इकाई – 3”
प्रश्न 1. पत्रकारिता का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पत्रकारिता का अर्थ पत्रकारिता का फलक इतना व्यापक हो गया है कि इसे किसी निश्चित परिभाषा की सीमा में बांधना संभव नहीं हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसकी अपने ढंग से परिभाषाएँ दी हैं।
जैसे डॉ. अर्जुन तिवारी ने ‘एन्साक्लोपीडिया आँफ ब्रिटेनिका’ के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की हैं –
‘पत्रकारिता के लिए अंग्रेजी में ‘जर्नलिज्म’ शब्द का व्यवहार होता है जो कि उस ‘जर्नल’ शब्द से हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ हैं ‘दैनिक’ ।
दिन-प्रतिदिन के क्रिया-कलापों, सरकारी बैठकों का विवरण ‘जर्नल’ में रहता था। सत्रहवीं एवं अठारहवीं शताब्दी में ‘पीरियॉडिकल’ के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूरनल’ और ‘जर्नल’ के प्रयोग हुए बीसवीं सदी में गंभीर समालोचना और विद्वत्तापूर्ण प्रकाशन को इसके अंतर्गत माना गया। ‘जर्नल’ से बना ‘जर्नलिज्म’ अपेक्षाकृत व्यापक शब्द हैं। समाचार-पत्रों एवं विविधकालिक पत्रिकाओं के संपादन एवं लेखन और तत्संबंधी कार्यों को पत्रकारिता के अंतर्गत रखा गया। इस प्रकार समाचारों का संकलन प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता हैं। सम-सामयिक गतिविधियों के संचार से संबद्ध सभी साधन, चाहे वह रेडियो हो या टेलीविजन इसी के अंतर्गत आते हैं।’
सरकारी टेलीविजन के सामाजिक उद्देश्य |
प्रश्न 2. खोजी पत्रकारिता क्या है ? स्पष्ट करते हुए एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर :– किसी समाचार को साक्ष्य एवं तथ्यपूर्ण बनाने के लिए जब पत्रकार अपने स्वयं के बल पर इन जानकारियों को खोज निकालता है, जो जानकारियाँ सामान्य जन के संज्ञान में नहीं होती, लेकिन सार्वजनिक महत्व की होती हैं. वह खोजी पत्रकारिता कहलाती हैं।
खोजी पत्रकारिता का आरम्भ अमेरिका से माना गया है तथा जोसेफ पलित्जर (जो कि न्यूयार्क वर्ल्ड के सम्पादक थे) को इसका जनक समझा जाता है। पत्रकारिता की यह महत्वपूर्ण विधा विश्व के प्रायः सभी देशों में खूब फल-फल रही हैं। भारत में भी खोजी पत्रकारिता की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार अरुण शौरी द्वारा ‘बोफोर्स काण्ड’ का उद्घाटन और ‘तहलका डॉट काम’ (रक्षा सौदों से सम्बन्धित) के रहस्योद्घाटन सभी की स्मृति में होंगे।
भारत में खोजी पत्रकारिता का प्रारम्भ ‘जुगवाणी’ नामक पत्रिका से हुआ था, जिसे देवव्रत नामक युवक ने प्रारम्भ किया था। सरकारी तंत्र के विरुद्ध उन्होंने खोजी पत्रकारों को अपना साथी बनाया। कालान्तर में ‘जुगान्तर’ नामक अखबार ने दमन और अत्याचार के विरुद्ध खोजी पत्रकारिता को अपना अस्त्र बनाया। आर.के. करंजिया ने मुम्बई से प्रकाशित ‘ब्लिट्ज’ अखबार द्वारा खोजी पत्रकारिता को नया आयाम दिया।
विगत कुछ दशकों से इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों (रेडियो, टेलीविजन) के बढ़ते प्रभाव के चलते खोजी पत्रकारिता को भी एक सशक्त माध्यम मिल गया। सर की परछाइयाँ, हैलो जिन्दगी, घूमता आईना, दूसरा रुख जैसे टेलीविजन कार्यक्रम अपनी खोजी रिपोर्ट के कारण लोकप्रिय रहे है। इन्टरनेट पत्रकारिता ने भी खोजी पत्रकारिता के आयामों को नई दिशा प्रदान की है। इस सम्बन्ध में ‘तहलका डॉट कॉम’ नामक वेब पत्र द्वारा रक्षा सौदों में घूसखोरी सम्बन्धी रिपोर्ट का उल्लेख किया है। वर्तमान में खोजी पत्रकारिता ने की भ्रष्टाचारों को उर्जागर किया है। इस प्रकार की पत्रकारिता को प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में ही इसे पर्याप्त ‘स्पेस’ दिया जा रहा है और पाठक और दर्शक भी पर्याप्त मिल रहे हैं।
B.A. 3rd Year Foundation Course “Hindi” Unit -2 |
प्रश्न 3. साहित्यिक पत्रकारिता को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर :– अपने प्रारम्भ काल से आज तक पत्रकारिता (चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया) ने बहुआयामी विकास किया है। सर्वप्रथम साहित्यिक पत्रिका को लिया जा सकता है। वस्तुत: भाषा, समाज और साहित्य के विकास में पत्रकारिता की बहुत बड़ी देन है। साहित्यिक पत्रिकाओं के माध्यम से ही छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, सदृश युगप्रवृतियों का प्रवर्तन हुआ है। इसके द्वारा अनेक विचारधाराओं का जहाँ उन्मेष हुआ वहीं दूसरी ओर इन्हीं से विशिष्ट प्रणालियों का प्रचलन हुआ है वास्तविकता तो यह है कि साहित्य और पत्रकारिता एक-दूसरे के पूरक हैं। हिन्दी साहित्य के प्राय: सभी युग प्रवर्तक तथा यशस्वी रचनाकार- भारतेन्दु हरिशचन्द्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, मुंशी प्रेमचंद, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट आदि लेखक और पत्रकार दोनों ही रूपों में उल्लेखनीय हैं।
प्रश्न 4. ग्रामीण पत्रकारिता क्यों आवश्यक है?
उत्तर :– भारत गाँवों में बसता है इसलिए जनसंचार का सर्वाधिक प्रबन्धन ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाना चाहिए। ग्रामीण व्यवस्था से सम्बन्धित पत्रकारिता को ग्रामीण पत्रकारिता का नाम दिया जाता है। भारत में ग्रामीण पत्रकारिता की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। छोटे-बड़े प्राय: सभी पत्र-उद्योग नगरों और महानगरों में ही स्थित हैं और पत्रकारों का ध्यान भी अधिकतर शहरी घटनाओं पर ही केन्द्रित रहता है। अखबारों के संवाद सूत्र ग्रामीणों के स्तर पर उतरकर न तो उपयुक्त भाषा का ही प्रयोग कर पाते हैं और न ही ग्रामीण संस्कृति की जानकारी ही रखते हैं। दूसरी ओर गाँवों में अखबारों की पाठकीयता नहीं के बराबर है। विज्ञापनदाता तो बिल्कल ही नहीं हैं इसलिए मीडिया में गाँव का जनजीवन दिन – प्रतिदिन उपेक्षित होता जा रहा है। यद्यपि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ‘चौपाल’ व ‘कृषि दर्शन’ सदृश कार्यक्रम गाँवों में पर्याप्त लोकप्रिय हैं। फिर भी आज कल्याणकारी पत्रकारिता के लिए आवश्यक है कि वह ग्रामीण संस्कति ग्रामीण समाजशास्त्र, ग्रामीण अर्थशास्त्र व ग्रामीण प्रशासन व्यवस्था को पर्याप्त स्पेस दें क्योंकि भारत मूलत: कृषि प्रधान देश होने के साथ यहाँ कि अधिकतर जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती है।
B.A. 3rd Year Foundation Course “Hindi” Unit – 1 |
प्रश्न 5. फीचर लेखन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :– फीचर लेखन भी पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी पत्र या पत्रिका में पढ़ने के लिए ढेरों सामग्री होती है और समय के साथ-साथ इस पाठ्य सामग्री का स्वरूप भी परिवर्तित होता जाता है, लेकिन इस सामग्री को प्राथमिक रूप से तीन श्रेणियों में स्पष्टत: विभाजित किया जा सकता है- समाचार, नीति सम्बन्धी सामग्री और फीचर ।
आधुनिक युग में फीचर अर्थात् रूपक की परिभाषा कुछ बदल गयी है। वस्तुत: कोई भी विशेष या प्रधान लेख, जो किसी पत्र-पत्रिका में किसी प्रकरण सम्बन्धी विषय पर प्रकाशित होता है, रूपक (फीचर) कहलाता है। यद्यपि फीचर अंग्रेजी शब्द है जिसका हिन्दी पर्याय ‘रूपक’ है, लेकिन हिदी पत्रकारिता में भी रूपक के स्थान पर ‘फीचर’ शब्द ही अधिक प्रचलित है। फीचर की कई परिभाषाएँ है, एकमत के अनुसार मानव की भावनाओं तथा मन को उत्प्रेरित करने वाला लेख ही फीचर है।
वास्तव में फीचर किसी न किसी मानवीय यथा- प्रेम, करुणा, घृणा, भय आदि के इर्दगिर्द घूमता है। यह समाचार से सर्वथा भिन्न होता है और मानवीय संवेदनाओं को उद्वेलित करता हुआ या तो यह पाठक को किसी मूल संवेदना से जोड़ता है या उससे विलग करता है। वस्तुत: फीचर समाचारों को नया आयाम देता है, उनका परीक्षण करता है, विश्लेषण करता है और उन पर नया प्रकाश डालता है। वर्तमान में फीचर समाचार पत्र का एक महत्वपूर्ण अंग हो गया है।
प्रश्न 6. मालवा के लोक साहित्य को विस्तार से समझाइए।
“अथवा”
मालवी लोकगीत को स्पष्ट कीजिए।
मालवी लोकगाथा तथा मालवीय लोक कथा पर प्रकाश डालिए।
मालवी लोकनाट्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :– इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए ➡ “यहां क्लिक करे”
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प्रश्न 7. एक अच्छे प्रारूपण की विशेषताएँ लिखिए।
“अथवा”
एक अच्छे आलेखन या प्रारूपण में किन-किन बातों का समावेश होना चाहिए?
“अथवा”
एक आदर्श या अच्छे आलेखन या प्रारूप में कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए?
उत्तर :- एक आदर्श या अच्छे आलेखन या प्रारूप-लेखन में निम्नलिखित बातों का समावेश होना चाहिए या निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –
- औपचारिकता- कार्यालयीन पत्र पूर्णत: औपचारिक पत्र होते हैं। अत: इनकी भाषा पूर्णत: वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए। शैली में अन्य पुरुष सर्वनामों का समावेश होना चाहिए। ‘आपका’, ‘भवदीय’ आदि शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।
- तथ्यपरकता- कार्यालयीन पत्रों में जो कुछ कहा या लिखा जाय, वह तथ्यपरक होना चाहिए। प्रारूप में विचार और कथन की अभिव्यक्ति में स्पष्टता होना चाहिए। प्रारूप पढते ही उसका भाव या आशय समझ में आ जाना चाहिए। उसमें कठिन और अप्रचलित शब्दों तथा लम्बे-लम्बे वाक्यों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। शब्द पद एवं वाक्य स्पष्ट होने चाहिए।
- संक्षिप्तता- प्रारूप में अनावश्यक बातों का समावेश नहीं होना चाहिए। प्रारूप को पूर्ण सतर्कता के साथ ठोस एवं संक्षिप्त रूप में लिखा जाना चाहिए। विचारों की अभिव्यक्ति क्रमबद्ध रूप में होनी चाहिए। संक्षिप्तता की धुन में कहीं प्रारूप की स्पष्टता ही समाप्त न हो जाए।
- पूर्णता- अर्थ की दृष्टि से प्रारूप में प्रतिपादित विषय-वस्तु स्पष्ट एवं पूर्ण होनी चाहिए। उसमें सूचनाएँ अधूरी एवं प्रमाण अपूर्ण नहीं होने चाहिए। यदि विषय के सम्बन्ध में कोई पिछला सम्बन्ध हो तो उसका निर्देश अवश्य किया जाना चाहिए।
- अनुच्छेद- प्रारूप हमेशा अलग-अलग अनुच्छेदों में लिखा जाना चाहिए। पहले अनुच्छेद के बाद में आने वाली अनच्छेदों पर या तो क्रम संख्या डाल देना चाहिये या उन पर उपशीर्षक लिख देने चाहिए ताकि विषय स्पष्ट करने में सुविधा रहे।
- उद्धरण- यदि नियमों या किसी उच्च अधिकारी के आदेश आदि को उद्धरण किया जाना हो, तो उसे मूल शब्दों में ही प्रस्तुत करना चाहिए।
- निशि्चतता- कार्यालयीन पत्र की रूपरेखा बिल्कुल निश्चित होती है। उसमें पत्र जारा करने वाली संस्था, इकाई, सन्दर्भ क्रमसंख्या, तिथि, फोन नम्बर आदि का प्रारम्भ में हो स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है। फिर पत्र के प्रकार का उल्लेख रहता है। मध्य में विषयवस्तु का प्रतिपादन होता है। नीचे दाहिनी ओर सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर रहते हैं। बाई ओर पत्र प्राप्त करने वालों का उल्लेख रहता है।
- उपयुक्त भाषा-शैली- प्रारूप लेखन में संयत और प्रांजल भाषा का प्रयोग होना चाहिये। उसमें अतिशयोक्ति, कवित्व, व्यंजना, अलंकारिकता आदि का समावेश नहीं होना चाहिये। वाक्य संक्षिप्त, सरल एवं सुबोध होने चाहिये। उसमें समाज चिन्हों, अल्पविराम, अनुस्वार आदि का उचित प्रयोग होना चाहिए। परिभाषिक शब्दों का उचित प्रयोग होना चाहिए।
- रजिस्ट्री- अन्त में पत्र पुन: रजिस्ट्री अनुभाग में आगे प्रेषण के लिए भेज दिया जाता है। इस प्रकार आलेखन या प्रारूपण को अन्तिम रूप मिल जाता है।
प्रश्न 8. टिप्पण का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए उसकी विशेषताएँ लिखिए।
“अथवा”
टिप्पणी लिखने के मुख्य उद्देश्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर :- सरकारी कार्यालयों में टिप्पणी लिखने का कार्य विशेष महत्व रखता है। इसके अभाव में पत्रों का अन्तिम निस्तारण असम्भव है। सचिव या उसका सहायक मामले से सम्बन्धित मुख्य विषय की ओर उच्च अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उस पर होने वाली कार्यवाही का सुझाव देता है, यही टिप्पणी है।
टिप्पणी लिखने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- सभी आवश्यक तथ्यों को स्पष्ट एवं संक्षिप्त रूप से उचित अधिकारी के सम्मुख लाना।
- उचित अधिकारी का ध्यान पत्र के विशेष विषय, पूर्व निश्चित तथ्य या प्रमाण की ओर ध्यान दिलाना।
- पत्र-व्यवहार पर विचार स्पष्ट करना।
- पत्र पर की जाने वाली कार्यवाही स्पष्ट करना।
इस प्रकार से पत्र से सम्बन्धित सभी जानकारी उच्च अधिकारी के सामने आ जाती है, जिसमें निर्णय लेने में उसे बड़ी सुविधा होती है।
अच्छे टिप्पणी की विशेषताएँ –
- समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।
- पूर्ववर्ती कार्यवाही से युक्त होता है।
- व्यक्तिगत आक्षेपों से मुक्त होता है।
- संयत भाषा का प्रयोग होता है।
- दुहराव नहीं होता है।
- संक्षिप्तता होती है।
- पत्राचार का विवरण एवं संकेत होता है।
- उत्तम पुरुष का प्रयोग नहीं होता है।
- विषय का उप विभाजन होता है। संख्याबद्ध अनुच्छेद होते हैं।
- समस्या का उल्लेख होता है।
- टिप्पणी करने वाले के आद्यक्षर होते हैं।
प्रश्न 9. अनुस्मारक क्या है? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
“अथवा”
अनुस्मारक की परिभाषा लिखते हुए इसकी विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :- इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए ➡ “यहां क्लिक करे”
प्रश्न 10. अनुस्मारक का एक उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
“अथवा”
अनुस्मारक का एक नमूना तैयार कीजिए।
“अथवा”
अनुस्मारक कब लिखा जाता है तथा इसका प्रारूप कैसा होता है?
उत्तर :- इस प्रश्न का उत्तर पढ़ने के लिए ➡ “यहां क्लिक करे”
Note…… आर्टिकल ज्यादा बड़ा होने के कारण उसको अगली पोस्ट में लिख दिया गया है , जाकर पढ़े। Unit (इकाई) – 3 के कुछ प्रश्न बाकि है, उन प्रश्नो के प्रश्न और उत्तर पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करे। या इस के नीचे Click Here के बटन पर क्लिक करे। प्रश्नो और उत्तर दोनों का अध्ययन कर सकते है।
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